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ला बेल दाम' से / रणजीत

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प्रिय तुम्हें ही
बस तुम्हें ही देखता मैं जा रहा हूँ
मुझे नहीं है ध्यान क्लास का
सरकती-सी जा रही-टकरा रही हैं
कीट्स की वे पंक्तियाँ जो प्रोफ़ेसर दुहरा रहे हैं
तीव्र स्वर की चॉक-स्टिक से
वे उन्हें लिखने की कोशिश कर रहे हैं
पर तुम्हारे ध्यान का डस्टर रहा है पौंछ उनको
चेतना के श्याम-पट से।
सिर्फ़ हल्का एक इम्प्रॅशन रहा है शेष
उसको भी तुम्हारे रंग छूते जा रहे हैं
कह रहा है कीट्स
उसके केश लंबे
(देखता हूँ मैं तुम्हारे
बहुत लंबे, मुक्त, बिखरे
अर्ध-रूखे केश)
पैर हल्के
(प्रोफेसर समझा नहीं हैं पा रहे
'हर फ़ूट वाज़ लाइट' से
क्या मतलब है कीट्स का?
क्योंकि नहीं वे देख रहे हैं
हल्के हिलते पैर तुम्हारे।)
और आँखें जंगली थीं
(क्षमा करना 'वाइल्ड' का अनुवाद मुश्किल है!)

विवर्ण मुख त्रस्त वीरों की
अरे यह चीख!
मोह निद्रा स्वप्न अथवा जागरण
ओह! यह तो क्लास
बैठी हुई तुम पास
बैठता ही जा रहा है दिल मेरा:
'ला बेल दाम' तो हो ही
'सेंस मर्सी' भी हो क्या?