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लिंगबोध / मनोज पाण्डेय
Kavita Kosh से
(पुनर्रचित कविता)
फिर से तय किया लाजमी है
जरूरी है
तय किया अलग करना नहीं
बल्कि बराबरी है
कि आपके हिस्से में
क्यों रहे
“दिन होता है”
और मेरे हिस्से में
“रात होती है”
क्यों न कुछ दिन
तुम्हारे हिस्से में
“रात होता रहे”
और मेरे हिस्से
“दिन होती रहे”
बराबरी के लिए लड़ने वाले
इस समय में
व्याकरण में भी
अब शब्दों के ‘लिंग-बोध’ भी
तय किया जायेगा
बराबरी के लिए लड़ने वालियों के हिसाब से