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लिए मैं होठों पर आया / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
लिए मैं होठों पर आया सुनाने बाबूजी,
उभरते दिल के हैं तेरे तराने बाबूजी।
मेरी हँसी का ठिकाना नहीं रहा यारों,
लगे परी की कहानी सुनाने बाबूजी।
मेरे ग़मों से वह ग़मगीन ही तो रहते थे,
नहीं बनाते वह हरगिज़ बहाने बाबूजी।
नहीं है कोई भी ग़म मुझको इस ज़माने में,
ग़मों की धूप में थे शामियाने बाबू जी।
मैं बात-बात पर यूँ ही जो रूठ जाता था,
ज़रूर आते थे मुझको मनाने बाबूजी।
सफ़र में जो भी रुकावट थी मेरी राहों में,
लगाए सब को हमेशा ठिकाने बाबूजी।
खिलौना चाँद-सा देते तो यह लगा मुझको
चले हैं चाँद पर भी घर बनाने बाबूजी।