लिखता हूँ पानी की सतह पर / नीलोत्पल
मैं तुम पर क्यों लिखता हूँ
इसकी मेरे पास कोई वजह नहीं
मैं सब वजहें और कारण भूलता हूँ
मैं लिखता हूँ और ग़ुम हो जाता हूँ
मैं छिपता हूँ तुमसे
भागता हूँ
तेज़ी से रास्ते पार करते हुए
गिर पड़ता हूँ
मैं नहीं जानता ऐसा क्यों है
जबकि तुम नहीं होती आसपास
मेरे पास कुछ नहीं है
न शब्द, न उपहार, न आवाज़
मैं अपने गूँगेपन में तुम्हें गाता हूँ
लिखता हूँ पानी की सतह पर
तुम्हारे सपने और उम्मीदें
मैं तुम्हें भेंट करता हूँ
पिघलता ग्लेशियर
मैं तुम्हें बून्द-बून्द टपकते देखता हूँ
उफ! कितनी शान्त आती हो तुम
जैसे एक गाँव सो रहा है
तुम्हारी मुन्दी पलकों के भीतर
तुम्हारी नग्न और बैलोस आँखें
चमकती है जुगनुओं की तरह
मैं तुम पर जो रचता हूँ
वह तुम्हारे लिए नहीं होता
यह बात यहाँ ख़त्म होती है
बाक़ी सब मेरे ध्वस्त अस्तित्व का हिस्सा है
जैसे तुम पर रचा सब कुछ।