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लिखते समय / तादेयुश रोज़ेविच
Kavita Kosh से
लिखते समय कवि
वह आदमी होता है
जिसकी पीठ घूमी हुई है
दुनिया की तरफ़
सच्चाई की अस्त-व्यस्तताओं की तरफ़
वह ऊपर उतरा आया है
त्याग दिया है उसने जीव जगत
चिड़ियों-सरीखे उसके
पैरों के निशान छपे हुए हैं
जमा होती बालू पर
दूर से वह तब भी
सुनता है आवाज़ें शब्द
औरतों की ख़नकदार हँसी
लेकिन देखना नहीं चाहिए उसे
पीछे मुड़कर
लिखते समय कवि
असुरक्षित होता है
उसे आसानी से
चौंकाया-चकराया
उपहास का पात्र बनाया
और रोका जा सकता है।
(1979)
अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल