भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखना पहला प्रेम साबित हुआ / ज्योति रीता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिखना सबसे बड़ा गुनाह था
हम गुनहगार हुए

जन्म के साथ ही झाड़ू कटका में हम निपुण हुए
सुबह की चाय पिता के बिस्तर छोड़ते ही
रात का दूध बिस्तर पर जाते ही पहुँचा दिए गए
पिता ने आशीर्वाद में अच्छा पति दिया

माँ ने पुश्तैनी गहने दिए
भाई ने घर के बाहर सुरक्षा दी
बोलने की सलाहियत हमसे छीन ली गई
हमारे कलम से स्याही सोख ली गई

हम घर की दीवार पर टोटके की तरह लटका दिए गए हमारी चुप्पी घर में दंभ का बचा होना था

हमें बस 'क' से कबूतर
'का' से काम रटाया गया
हम 'क' से कलम
'का' से कागज़ रट गए

हम बोले कम लिखे ज़्यादा
हम हँसे कम रोए ज़्यादा
इस तरह दरकने से खुद को बचाए रहे

हमने चौका-चूल्हा के बाद सोचने की जहमत उठा ली
गहरी रात में हम लिखते रहे
कागज़ पर खींच दी एक लकीर
हमने गुड़िया की चाबी तोड़ दी

हम तक़सीर (अपराधी) हुए
मवाद भरा नासूर हुए
नापाक हमें मान लिया गया

लिखना पहला प्रेम साबित हुआ
बाक़ी सब बिवाई।