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लिखने की खातिर मैंने कब लिक्खा है / अर्चना जौहरी

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लिखने की खातिर मैंने कब लिक्खा है
साँसों से बेजार हुई तब लिक्खा है।

ढूँढ रहे सब ईश्वर अल्लाह जीजस को
मैंने तो बस माँ को ही रब लिक्खा है।

मेरे बारे में क्या सबसे पूछ रहे
ग़ज़लों में मेरी मैंने सब लिक्खा है।

घुटता था जो सीने में सालों-सालों
हिम्मत करके सब का सब अब लिक्खा है।

लब से चाहे कह पाऊँ या नहीं कहूँ
पर मैंने सच ही लिक्खा जब लिक्खा है।