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लिखी हुई मजबूरी है / प्रदीप शुक्ल

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बन्धु,
तुम्हारे चेहरे पर ही
लिखी हुई मजबूरी है

जो भी उस पाले में होगा
मारा जाएगा
इस पाले में वही रहेगा
जो गुण गायेगा
माना चारण गीत तुम्हे
कंठस्थ नहीं है
मौन तुम्हारा तुम्हे जगह
पूरी दिलवाएगा
बन्धु,
तुम्हे ज़िंदा रखने में
चुप्पी बहुत जरूरी है

जिधर हवा बह रही उधर
बह जाओ प्यारे
नहीं अकेले, लाखों होंगे
संग तुम्हारे
धारा के विपरीत चलोगे
तो डूबोगे
बचो, नहीं हो जाओगे
कुलबर्गी, पनसारे
बन्धु,
तुम्हारा शोक मनाना
बेहद गैरजरूरी है

बन्धु,
तुम्हारे चेहरे पर ही
लिखी हुई मजबूरी है।