लिपट के धूप से सहमा हुआ समंदर है,
अजब ख़मोशी है उतरा हुआ समंदर है।
बस एक लरजती जर्ज़र सी नाव है जिसमें,
दुबक के कोने में बैठा हुआ समंदर है।
लुटे हुए से किसी शह्र की तरह जख़्मी,
हरेक सिम्त किनारे पे बिखरा हुआ समंदर है।
किसी पहाड़ पे जैसे कि बर्फ़ जम जाए,
नदी की आँख में ठहरा हुआ समंदर है।
मचल-मचल के 'ज्ञान' उठ रही हैं लहरें पर,
कई दिनो से कहीं खो गया समंदर है।