भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लिपट तिरंगे में आया है / गीता पंडित
Kavita Kosh से
लिपट तिरंगे में
आया है
भाल लगा टीका जिसका
कंगन बिंदी उसके रोये
अधर रहे
लेकिन मुस्का
सीमाओं पर
रहन रखे थे
स्वप्न धरा ने श्वासों के
जान नहीं पायी वह फिर से
दांव बनेगी
पासों के
महंदी पूछे बार-बार तुम
बोलो शव ये
है किसका
चुपके से फिर
वही मित्रता
अट्टहास कर जायेगी
गलबहियाँ दे नेताओं को
चाय वही
पिलवायेगी
आँख का काजल फिर सोचेगा
रक्त बहा
क्यों फिर उसका
कंगन बिंदी उसके रोये
अधर रहे
लेकिन मुस्का।