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लिपि पोति अयलो कोठरिया, चननवाँ छिरकि अयलों हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लिपि पोति अयलो<ref>आई</ref> कोठरिया, चननवाँ छिरकि<ref>छिड़कना</ref> अयलों हे।
ए ललना, घुमि फिरि अयलन<ref>आये</ref> रघुनन्नन, सेजिया मोहि डँसि<ref>बिछाना, सजाना</ref> देहु हे॥1॥
सोनहिं के मोरा नइहर, ओरियनि<ref>छप्पर का अगला भाग जहाँ से वर्षा का पानी टपकता है</ref>,ओलती<ref>मोती </ref> चुए हे।
ए ललना, सातहिं<ref>सात</ref> भइया के हम बहिनियाँ, सेजियवा हम कइसे<ref>किस तरह</ref> डाँसब<ref>बिछाऊँगी</ref> हे॥2॥
एतना बचन राजा सुनलन<ref>सुना</ref>, सुनहुँ न पवलन<ref>पाया</ref> हे।
ए ललना, चढ़ि गेलन घोड़े असवार<ref>सवार</ref>, मधुबन जायब<ref>जाऊँगा</ref> हे॥3॥
एतना बचन धनि<ref>सौभाग्यशालिनी पत्नी</ref> सुनलन, सुनहुँ न पवलन हे।
ए ललना, धरि लेलन घोड़े के लगाम, हमहुँ जोउरे जायब हे॥4॥
सोनहिँ के तोरा नइहर, ओरियनि मोती चुए हे।
ए धनि, सातहिँ<ref>सात</ref> भइया के तुहूँ बहिनियाँ, कइसे तुहूँ बन जयबो<ref>जाओगी</ref> सेजिया डाँसब हे॥5॥
फिरहुँ फिरहुँ ए राजा जी, फेनुकै<ref>फिर से</ref> सेजिया डाँसब हे॥6॥
लिपि पोति अयलो कोठरिया, चननवा छिरकि अयलों हे।
ए ललना, डाँसि जे देलो<ref>दिया</ref> लाली पलँगिया, सोवहु राजा रघुनन्नन हे॥7॥

शब्दार्थ
<references/>