ओ फूलों के खिलने के मौसम ओ मौसम रूपान्तरण के 
बिन बदली का मई और जून कंटीले 
नहीं भूल पाउँगा कभी वह फूल लिली और गुलाब के 
न जिन्हें वसन्त आगोश में अपनी संभाले 
नहीं भूलूँगा कभी वह त्रासद भ्रम
शव, भीड़, धूप और क्रंदन
स्नेहवश जो गाड़ियाँ बख़्तरबंद दे गया बेल्ज़ियम 
काँपती हवा और राह वह जिसमें हर तरफ़ भंवरों का गुंजन
विवेकहीन विजय जो आती है लड़ाई के बाद
रक्त जो पूर्वाभास है किरमिजि रंग में चुम्बन का 
और सब जो बुर्ज में खड़े मरना चाहते है एक-दूसरे के बाद 
लिली से घिरे हुए बदरंग लोगों का 
नहीं भूलूँगा मैं कभी फ्राँस के बागीचों को 
बिसरे हुए युगों के दागों का सैलाब 
न शाम की मुसीबत न ख़ामोशी के रहस्य को 
तय की हुई राह भर गुलाब ही गुलाब 
संत्रास की हवाओं में फूलों का झूठ 
सैनिक जो गुजरते हैं भय के पंखों पर 
उन्मादी साइकिल सवारों को, विडम्बना भरी तोपों को 
नकली डेरेवालों का दयनीय साजोसामान 
पर मैं नहीं जानता क्यों यह अशांत छवियां 
मुझे लौटा लाती हैं उसी  ठहराव में 
सैंत-मार्त में एक जनरल काले पत्तों सा बना 
जंगल के किनारे एक विला नोरमाँद 
सब ख़ामोश है दुश्मन छाया में सुस्ता रहा 
हमें बताया गया शाम को पेरिस दुश्मन ने जीत लिया
मैं नहीं भूलूँगा कभी लिली और गुलाब 
और न वह दो प्रेम जो हमसे बिछड़ गए 
पहले दिन का गुलदस्ता लिली लिली फ्लांद्र की 
छाया की मिठास जहाँ मृत गालों का करते हैं श्रृंगार
और तुम्हारे वापसी के गुलदस्ते के गुलाब कोमल 
आगज़नी का रंग दूर और ऑंजू के गुलाब।
ल क्रेव कअर (युध्द की कविताएं)1941 से
मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी