लिहसि गे गौरा बेटी, तेल मधु हे खरिया हे / अंगिका लोकगीत
प्रस्तुत गीत पूर्णिया जिले के बंगाल राज्य की सीमा से लगे हुए क्षेत्र से आया है। इसलिए इसकी भाषा पर कुछ-कुछ बँगला का प्रभाव है, लेकिन इसमें अंगिका की प्रकृति का भाव अक्षुण्ण है।
लिहसि[1] गे गौरा बेटी, तेल मधु हे खरिया[2] हे।
कि और हाथे गौरा गे, आगिनसार[3] पटोर[4] हे॥1॥
एक कोसे गेले गौरा गे, गेले दोइ कोस हे।
कि तेसर कोसेॅ गौरा गे, सरे[5] सिलाने[6] हे॥2॥
लहिये सिनाये[7] गौरा गे, चौका चढ़ि बैसे हे।
कि दसो[8] लगी गौरा गे, चीरे लम्मा केस हे॥3॥
कै सारि[9] आबे गौरा गे, हथियो घोरा हे।
कि कै सारि आबे, बरियात कि कै सारि हे॥4॥
पाँच सारि आबे गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
दस सारि आबे बरियात, कि दस सारि हे॥5॥
कहाँ लाय राखबै गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि कहाँ लाय राखबै बरियात, कि कहाँ लाय हे॥6॥
घोरा घरँ[10] राखबै गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि बासा[11] घरँ राखबै बरियात, कि बासा घरँ हे॥7॥
किए लाय जमैबै[12] गौरा, हाथियो घोरा हे।
किए लाय जमैंबै बरियात, कि किए लाय हे॥8॥
धान चौर[13] जमैंबै गोरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि खूबा[14] औंटल दूध लय, जमैंबै बरियात हे॥9॥
किए मुखसुद्धअ[15] देबै गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
किए मुखसुद्धअ बरियात, कि किए देबै ना हे॥10॥
रोठा[16] गुअबा[17] गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
साँची[18] पान जमैंबै बरियात, कि साँची पान हे॥11॥
किए बिदागी[19] गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
किए रे बिदागी बरियात, कि किए बिदागी ना हे॥12॥
धोतिया बिदागी गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि गौरा बिदागी बरियात, कि गौरा लाए हे॥13॥