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लीप दिए अरमान / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
चैन की साँस न ली दो घड़ी
जिस किसी को जब अवसर मिला हमारे हाथ डाल गया हथकड़ी
जगत की भेद भरी मुस्कान
छाँटती गई हमारे पँख
परकटा जीवन लगने लगा
किसी मन्दिर का उतरा शंख
समय के साथ बदलने लगी वफ़ादारों की बारहखड़ी
पहन हमदर्दी की पोशाक
कटखनी बस्ती के अभिशाप
मुझे जो साँझ-सकारे मिले
आचमन कर डाले चुपचाप
बदन के लिए ज़हर हो गई ज़माने भर की धोखाधड़ी
धूप ने तोड़ लिया सम्बन्ध
रात ने लीप दिए अरमान
चाँद बेरुखी दिखाने लगा
मारने लगे सितारे बान
अमावस के घर में जल रही पनीली आँखों की फुलझड़ी