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लुकाइल कहाँ अँजोर / सुभद्रा वीरेन्द्र
Kavita Kosh से
लुकाइल कहाँ अँजोर
जिनगी खोजे आपन भोर
भुक्-भुक् दियना टूटल मड़ई
कबले जीही अइसे मनई
रहि-रहि के डेरवावे राति
झर-झर झरेला लोर। लुकाइल....
आसपास न कुछुओ लउके
घर-आँगन में चुहिया छउके
मनवाँ हरमेसे जे बउखे
सूखि गइल बा सोर। लुकाइल.....
सून अकसिया टुक्-टुक् ताके
ललकी किरिन न काहे झाँके
जिनगी हमार सवाल भइल
अझुरल कहवाँ डोर। लुकाइल.....
दिन-दुनियाँ के खबर भुलाइल
धीर मन के कुल्ही हेराइल
तिल-तिल जीयल लागे मूअल
खूखल नदिया कोर। लुकाइल.....