लुक्खी-बनरिया दाल-भात खो / अमरेन्द्र
‘लुक्खी-बनरिया दाल-भात खो, सैय्यां बोलाय छौ, पटना जो
पटना में हमरोॅ स्वामी गे, बोलै छैµबड़का नामी गे
न्याधिश के चपरासी छेकै, मुद्इ सब के काशी छेकै
न्याधिश बाबू भले कोय छै, असली तेॅॅ चपरासी होय छै
केहनोॅ-केकरोॅॅ लाग लगैलकै, की कहियौ कि कत्तेॅ देलकै
एम0 ए0, बी0 ए0 बैठले सब्भे, हुनका नौकरी मिललै कब्भे
बड़का-सब के साथ नै पूछैं, अलगी के कुछ बात नै पूछैं
पन्दरह-बीस तेॅॅ बात करै के, सौ-दू सौ कागज देखै के
पैरवी के पहिले लै लै छै, फेरू तेॅ जो हो, सो हो’
लुक्खी-बनरिया दाल-भात खो, सैय्यां बोलाय छौ पटना जो ।
पटना के मोॅर-मिनिस्टर नामी, जिनका सेॅ जिनकोॅ कपड़े दामी
कहियो-कहियो बोलथौं देसी, सब्भे ठां अंगरेजी बेसी
भैटरिक मेॅ घुड़कनियां खैलोॅॅ, की बुझथौं, सब टा उमतैलोॅ
जेन्हंै एको के बात चलै छै, गाली, चप्पल, लात चलै छै
तुलसी-सूर कवि कोय होथौं, सब्भे पर की भासन देथौं
खाली दौरा-दौरी हिनकोॅ, घूस के कुच्छू थाह न जिनकोॅ
केकरा-केकरा तोहें दूसभैं, एक्कें भांड़ी के सभ्भे ठो
लुक्खी-बनरिया दाल भात खो, सैंय्यां बोलाय छौ पटना जो।
पटना के हौसपीटल नामी, गुन के बदला खामिये खामी
सेथरोॅ डाक्टर सुविधाभोगी सबटा पंडा कुछ-कुछ जोगी
रोगी केॅॅ ललका पानी पिलैथौं, आपने ताकतोॅॅ के गाली खैथौं
हिनियो की पढ़लोॅ-लिखेलोॅ छै, ई सब तेॅॅ देवे जानै छै
बायां आँख मेॅ घाव जों होतौ, औपरेसन दायां रोॅ करतौ
दाँत अगर जों दुखतेॅ रहतौं, बुद्धि देखैं कि नाड़ी देखतौ
डाक्टर होय छै की बिन पढ़लैं, की होय छै रब्बड़ लटकैलैं
पेट फाड़ी केॅ पेटे में कैंची रक्खी देथौं, यहेॅ सगरो
लुक्खी-बनरिया दाल भात खो, सैय्यां बोलाय छौ पटना जो ।