भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लुगऽरिया छीन लिहलस / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
लुगऽरिया छीन लिहलस
'समय पपिया' ए राम...
लुगऽरिया छीन लिहलस
'समय पपिया' ए राम...
पहिले-पहिलवाँ त् धोतिया लिअउलस
हिरवा के मोतिया के गुरिया जड़उलस
सोनवा के तरवा से अँचरा पिरउलस
मोहे अभागिन के रनिया बनउलस...
ना जाने फिर का भयल एक दिनवा
धोतिया पकरि मोरी खीचत जोबनवा
नोचत-पटकत रे पपिया धधायल
रनिया के लोरवा न चूअत देखायल
सउऽनत-सउऽनत करऽत दुरगतिया
तनिखो न लाजऽ सरम नाही पपिया
सोनवा की मोतिया की सुग्घर सी धोतिया
अइँठत-अइँठत लुगरी बनउलस...
तउनो पे नाही रे भुखिया मिटायल
तनवा से लुगरी के लिहले परायल
मोहे, अभागिन अउरो बनउलस
समय पपिया ए राम....
लुगऽरिया छीन लिहलस
'समय पपिया' ए राम...
लुगऽरिया छीन लिहलस
'समय पपिया' ए राम...