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लुगाई रै मांयनै जीवै है छोरी / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
लुगाई रै मांयनै
आखी उमर जीवै है
एक छोरी
आधींटै ई नीं
बुढ़ापै तांई
बा छोरी
उमर रै आंतरै नै डाक‘र
पूठी बालपणै में खींच लेवै
उणनै ।
बा बोछरड़ी छोरी
जद जाग जावै
लुगाई भूल ज्यावै
सासू-जेठाणी रो कायदो
उघाड़ फेंकै
लाज-सरम रा ओढ़णा
अर पूग जावै
एक बीजी दुनियां में
जिणरो आभो
इतो ई ऊंचो कोनी
कै हींडा री ऊबल्यां सूं
कोनी नावड़ीजै।
उण दुनियां में
बा लुगाई
गूं‘ठो उठा‘र
धाप‘र निरखै
च्यारूमेंर
खुल‘र हांसै
सातवैं सुर में गावै
मांड-रागणी
भायल्यां भेळी
करै बजारिया
चौका-चूल्हा री चिंता
छोड‘र
रमै निसरणी
अर घोटै हथायां .......
छोरी रै जागणै रो मतळब
रगदड़ जूण में
चीकणै दिनां री
गळांई हुवै
लुगाई खातर।