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लुटा कर हमने पत्तों के ख़ज़ाने / वज़ीर आग़ा


लुटा कर हमने पत्तों के ख़ज़ाने
हवाओं से सुने क़िस्से पुराने

खिलौने बर्फ़ के क्यूं बन गये हैं
तुम्हारी आंख में अश्कों के दाने

चलो अच्छा हुआ बादल तो बरसा
जलाया था बहुत उस बेवफ़ा ने

ये मेरी सोचती आँखे कि जिनमे
गुज़रते ही नहीं गुज़रे ज़माने

बिगड़ना एक पल में उसकी आदत
लगीं सदियां हमें जिसको मनाने

हवा के साथ निकलूंगा सफ़र को
जो दी मुहलत मुझे मेरे ख़ुदा ने

सरे-मिज़गा वो देखो जल उठे हैं
दिये जितने बुझाये थे हवा ने