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लुटा जो नगर था वफ़ा नाम का / निश्तर ख़ानक़ाही

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लुटा जो नगर था वफ़ा नाम का
निशाँ तक ना बाक़ी रहा नाम का

भरी दोपहर में कहाँ गुम हुआ
यहाँ था जो इक बुत ख़ुदा नाम का

हवा ले उड़ी, कुछ नमी खा गई
वरक़ था कि बंजर हुआ नाम का

कहाँ तन से दस्ते-दुआ* कट गिरे
सहारा भी टूटा जो था नाम का

रगों में नहीं कुछ वजुज़* कर्ब* के
कहाँ है वो पल इन्तहा नाम का

1-दस्ते-दुआ-प्रार्थना करने वाले हाथ

2- वजुज़-सिवाय

3- कर्ब-पीड़ा