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लुटा दिहल परान जे / प्रसिद्ध नारायण सिंह
Kavita Kosh से
लुटा दिहल परान जे, मिटा दिहल निसान जे।
चढ़ा के सीस देस के, बना दिहल महान जे।।
जने-जने जगा गइल, नया नसा पिला गइल।
जला-जला सरीर के, स्वदेस जगमगा गइल।।
पहाड़ तोड़ि-तोड़ि के, नदी के धारि मोड़ि के।
सुघर डहरि बना गइल, जे काँट-कूँस कोड़ि के।।
कराल क्रान्ति ला गइल, ब्रिटेन के हिला गइल।
बिहँसि के देस के धजा, गगन में जे खिला गइल।।
अमर समर में सो गइल, कलंक-पंक धो गइल।
लहू के बूँद-बूँद में, विजय के बीज बो गइल।।
ऊ बीज मुस्करा उठल, पनपि के गहगहा उठल।
विनास का विकास में, बसंत लहलहा उठल।।
कली-कली फूला गइलि, गली-गली सुहा गइलि।
सहीद का समाधि पर, स्वतंत्रता लुभा गइलि।।
चुनल सुमन सँवारि के, सनेह-दीप बारि के।
चलीं, उतारे आरती, सहीद का मजारि के।।