भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लुट गेल होरी, लुट गेल चइता / रामेश्वर प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लुट गेल होरी, लुट गेल चइता,
लुट गेल आज कजरिया रे।
पच्छिम के पछेया से भर गेल
हम्मर गाँव-नगरिया रे।।

अबहूँ चेत∙ भारत के ऐश्वर्य न कहीं लुटाव∙
तोहर अप्पन अमर धरोहर, एकरा आज बचाव∙
जीवन के जे चरम सत्य हए
उहे हामान डगरिया रे।।

सुखी न होई भारत कबहूँ ए उधार जीवन से,
कहिया तक तू आग लगएब∙ सुखद-सुभग मधुवन में
भारत खुद हए स्वर्ण शिखर,
मत फेंक∙ पाग-पगारिया रे।।

कइसन रहली, का हो गेली, देख∙ नजर उठा के,
तनी प्रेम से देख∙, कब तक जीब∙ भाग्य लुटा के
कभी न इज्जत दी माँगल आ
लागल दाग चदरिया रे।।