भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लूओं पर चढ़ घुमर घिरती... / कालिदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: ऋतुसंहार‍
»  लूओं पर चढ़ घुमर घिरती...

लूओं पर चढ़ घुमर घिरती धूलि रह-रह हरहरा कर

चण्ड रवि के ताप से धरती धधकती आर्त्र होकर

प्रिय वियोग विदग्ध मानस जो प्रवासी तप्त कातर

असह लगता है उन्हें यह यातना का ताप दुष्कर

प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !