भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लूर / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
बढ़ियां से राखॉे सब बसता
मन कॅ राखो हरदम हँसता
लूर जरूरी आरो ससता
बायां तरफें चलिहोॅ रसता।
रूक्खों-सुक्खों सब खैने जा
बढ़िया सॅे सब बतियैने जा
मिली-जुली रहला से बाबू
भारी काम लगै छै ससता,
बढ़ियां से राखॉे सब बसता।