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लेकिन कोई घर नहीं / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
मजदूरों !
तुम्हारे पॉंव दिखते हैं
हाथ दिखते हैं
लेकिन तन नहीं
तुम्हारा पसीना दिखता है
काम दिखता है
लेकिन नाम नहीं
तुम्हारा आना दिखता है
जाना दिखता है
लेकिन भूखा रहना नहीं
तुम्हारा हाथ फैलाना दिखता है
सिर झुकाना दिखता है
लेकिन दर्द से कराहना नहीं
तुम्हारे बच्चे दिखते हैं
बीवी दिखती है
लेकिन कोई घर नहीं ।