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लेखक / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
दळियो दळण आळी मसीन !
जकी
दळ्यां बगै।
अब चावै कोई खावै
ना खावै
उण री सेहत ऊपर
कोई फरक नीं आवै।