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लेखा / गुरप्रीत
Kavita Kosh से
मैंने सब का,
कुछ न कुछ देना है
देना यह मुझसे,
कैसे भी दिया नहीं जाएगा
मेरे आते जाते सांस,
घूमती धरती के साथ घूमते हैं,
चमकते सूरज के साथ चमकते हैं
मेरे पास, तुम्हारे पास भाषा है
मैं धन्यवाद कह कर मुक्त हो सकता हूँ
नदी, पहाड़, जंगल, मैदान, पंछियो के लिए
मैं कौन सा ढंग चुनूँ...