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लेडा का हंस / अज्ञेय
Kavita Kosh से
ले लो फूल टटका
देव-खग 4की चोंच से :
अब भले झुलस
मुरझा जाए
थरथराती छातियों के बीच
दे दो समुद अपना आपअतिथि तेजोपुंज में हो जाए
अन्तर्धान। हर आनन्द
चिता की लकड़ियाँ भी
स्वयं काँधे बाँध लाता है
इसी से वह मृत्यु से भी
मुक्त निज अस्तित्व पाता है
बनाता है एकान्त निज पहचान।