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लेता नहीं ख़बर अब वो अपने इस जहाँ की / नफ़ीस परवेज़

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लेता नहीं ख़बर अब वह अपने इस जहाँ की
फिर भी न हमने छोड़ीं उम्मीदें आसमाँ की

हमने तो तय किए हैं दश्त-ए-सफ़र अकेले
हमको नहीं ज़रूरत कोई भी कारवाँ की

दिल मुंतज़िर है उनका पलकें बिछाए अपनी
हो जाये मेहरबानी कब दिल पर मेहरबाँ की

ख़ुद बे-क़रार रह कर कब तक रखेंगे दूरी
इक दिन तो ख़त्म होगी दूरी ये दरमियाँ की

बागों में गुल भी कर लें अपनी ज़रा हिफाज़त
खिलता चमन न उजड़े भूलों से बागबाँ की

हर रंग ख़ुशबुओं से महकेंं दरों दिवारें
हमने दुआयें मांगीं इक ऐसे आशियाँ की