भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लेता नहीं ख़बर अब वो अपने इस जहाँ की / नफ़ीस परवेज़
Kavita Kosh से
लेता नहीं ख़बर अब वह अपने इस जहाँ की
फिर भी न हमने छोड़ीं उम्मीदें आसमाँ की
हमने तो तय किए हैं दश्त-ए-सफ़र अकेले
हमको नहीं ज़रूरत कोई भी कारवाँ की
दिल मुंतज़िर है उनका पलकें बिछाए अपनी
हो जाये मेहरबानी कब दिल पर मेहरबाँ की
ख़ुद बे-क़रार रह कर कब तक रखेंगे दूरी
इक दिन तो ख़त्म होगी दूरी ये दरमियाँ की
बागों में गुल भी कर लें अपनी ज़रा हिफाज़त
खिलता चमन न उजड़े भूलों से बागबाँ की
हर रंग ख़ुशबुओं से महकेंं दरों दिवारें
हमने दुआयें मांगीं इक ऐसे आशियाँ की