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ले उड़ी / अमित कल्ला
Kavita Kosh से
कहकर
कुछ शब्द
कमल की पँखुरियों से
झरते
समय को
कथा-सी
ले उड़ी
नहीं
सम्भलता
उससे
समय
अब तो सिर्फ़
निशाना लगाती है
चिड़िया
शाख-दर-शाख
हरा जोबन चढ़ाती है।