ले क़ज़ा एहसान तुझ पर कर चले / मरदान अली ख़ान 'राना'
ले क़ज़ा एहसान तुझ पर कर चले
हम तेरे आने से पहले मर चले
कूचा-ए-जानाँ[1] में जाना है ज़रूर
चाहे आरा सर पे या ख़ंजर चले
बस ये है कू-ए-बुताँ[2] की सरगुज़श्त[3]
सर पे मेरे सैकड़ों पत्थर चले
कू-ए-जानाँ का न पाया कुछ निशान
ख़िज्र[4] के हमराह[5] हम दिन भर चले
पाई तेरे दर पे आकर ज़िन्दगी
ओ मसीहा! खाके हम ठोकर चले
देखिए देखेंगे क्या रोज़-ए-जज़ा[6]
याँ बशर[7] आए, वहाँ बा-शर[8] चले
हो खिज़ाँ[9] क्यूँकर[10] न गुलशन की बहार
जब यहाँ बाद-ए-सबा[11] सर-सर चले
बज़्म[12] से जाते हो दुज़दीदा-नज़र[13]
नीम-बिस्मिल[14] कर चले, क्या कर चले
क़ौल-ए-वाइज़[15] ने न कुछ तासीर[16] की
कुश्ता-ए-काकुल[17] पे कब मंतर चले
खूँ तेरी तिरछी निगाहों ने किया
लाख ख़ंजर एक कुश्ता[18] पर चले
फ़र्श पर है यूँ ख़िरामाँ[19] रश्क-ए-माह[20]
अर्श[21] पर जैसे कोई अख्तर[22] चले
कब हुई सौदा-ए-मिज़्गाँ[23] से शिफ़ा[24]
नश्तरों पर सैकड़ों नश्तर[25] चले
(1. प्रियतमा की गली; 2. बुतों की गली; 3. वृतांत/जीवनगाथा; 4. रहनुमा/लीडर; 5. साथ-साथ; 6. फ़ैसले का दिन/प्रलय-दिवस; 7. आदमी; 8. बुराई के साथ/बुराई लेकर; 9. पतझड़/उजाड़ मौसम; 10. कैसे; 11. सुबह की ठंडी हवा; 12. महफ़िल; 13. नज़र चुराते हुए; 14. अधमरा/निढाल प्रेमी; 15. सद्पुरुष की बात; 16. असर/प्रभाव; 17. ज़ुल्फों का मारा हुआ; 18. क़त्ल किया हुआ/मारा हुआ; 19. टहलना/टहलते हुए; 20. बेहद ख़ूबसूरत; 21. आसमान; 22. तारा; 23. ख़ूबसूरत पलकों को देखकर उपजा दीवानापन; 24. स्वास्थ्यलाभ/ठीक होना; 25. तीर)