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ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ / अहसनुल्लाह ख़ान 'बयाँ'

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ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ सीने पर दिया
जो लिया उस का इवज़ उस से मुझे बेहतर दिया

दूर तुझ से साग़र-ए-मय पर नज़र मैं ने जो की
कासा अपना चश्म ने ख़ूनाब-ए-दिल से भर दिया

जो सुलूक अब दिल में आवें कर मुझे तक़दीर ने
दस्त ओ बाज़ू बाँध कर तेरे हवाले कर दिया

दिल-बरों के शहर में बेगानगी अँधेर है
आशनाई ढूँढता फिरता हूँ मैं ले कर दिया

बाज़े ही औक़ात राहत हम को दी है चर्ख़ ने
रंज ओ ग़म ही उस सितम-गर ने 'बयाँ' अक्सर दिया