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ले लो जी अपना भाग / राजेन्द्र प्रसाद सिंह
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लेलो जी, अपना भाग,
कल ये
हाथ पराये होंगे!
आँगन की मिट्टी का मह-मह
चन्दन चुक जाएगा,
पिंजड़े में बैठ सुश्रपंखी
सरगम रुक जाएगा,
गौरया दर्पण-द्वारा न खटकयेगी;
लेलो जी, संचित राग,
कल ये
चषक जुठाये होंगे!
सडकों पर, बागों में धीरज के
पैर छिदे, ठहरे हैं,
अब भी तो समझो,---घाव
बांसुरी के कितने गहरे है!
यह तो बेगनबेलिया रोज बोलेगी,-
लेल जी, जुड़ती आग,
कल से
बिछुड़े साए होंगे!
लो, नानखटाई लो, शायद यों
फिर ना कभी सिंक पायें,
शर्बत में तिरते नयन चूम लो,
फिर न कभी दिख पायें,
बर्टी की गोली रोज छेद जाएगी,
दे दो मंजरी- सुहाग,
कल से
कनु अनपाये होंगे!