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लैके पन सूछम अमोल जो पठायौ आप / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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लैके पन सूछम अमोल जो पठायौ आप
ताकौ मोल तनक तुल्यौ न तहाँ सांठी तैं ।
कहै रतनाकर पुकारे ठौर-ठौर पर
पौरि वृषभान की हिरान्यौ मति नांठी तैं ॥
लीजै हरि आपुहीं न हेरि हम पायौ फेरि
याही फेर माहि भए माठी दधि आंठी तैं ।
ल्याए धूरि पूरि अंग अंगनि तहाँ की जहाँ
ज्ञान गयौ सहित गुमान गिरि गांठी तैं ॥113॥