भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लैण्डस्केप / गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर सुनसान- से साहिल के क़रीब
इक जवाँ पेड़ के पास
उम्र के दर्द लिए, वक़्त का मटियाला दुशाला ओढ़े
बूढ़ा - सा पाम का इक पेड़ खड़ा है कब से
सैंकड़ों सालों की तन्हाई के बाद
झुकके कहता है जवाँ पेड़ से: 'यार,
सर्द सन्नाटा है तन्हाई है ,
कुछ बात करो'