भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लैरियो / सिया चौधरी
Kavita Kosh से
सावण
बरस‘र थमग्यो
आभै ऊपरां
धरा-अम्बर री
प्रीत रो
मंडियो लैरियो।
चिलकण लाग्यो
कसूमल तावड़ो
जाणैं साख भरी
आं री
अणबोली सोगनां री।
मांग लियो म्हैं
ऐन उण घड़ी
ल्याय द्यो नीं ओ
ऐड़ा ईं प्रेम रा
रंगां में राचीज्योड़ो
लैरियो....।
आंखडल्यां में थांरी
ढुळक आयो
अणथाक नेह रो
अखूट झरणों
दियो उथळो
आगलै सावण... जरूर।
आज भी
उडीक है
उण सावण री
जद पिव ल्यावैला
अखंड सुहाग रो
लैरियो...।