लै पटपीत भले पहिरे पहिराय पियै चुनि चूनरि खासी ।
त्योँ पदमाकर साँझहिते सिगरी निसि केलि कला परगासी।
फूलत फूल गुलाबन के चटकाहट चौँक चली चपला - सी ।
कान्ह के कानन आँगुरी नाइ, रही लपटाइ लवंग लता- सी ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।