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लॉकडाउन से अनलॉक तक / चंदन द्विवेदी
Kavita Kosh से
जब सुविधा के द्वार खुलेंगे
एक नहीं दो चार खुलेंगे
जीता जिसने लड़ी लड़ाई
हिम्मत से लड़ यार खुलेंगे
आंखों से इज़हार हुआ तो
होठों के इनकार खुलेंगे
बिक जाएंगे सभी खिलौने
जब अपने बाज़ार खुलेंगे
ताले जितने बड़े लगा लो
चाबी गर हो यार खुलेंगे