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लोअर परेल / शैलेन्द्र चौहान
Kavita Kosh से
धागे पर धागे
धागे पर धागे
कौन सा स्पूल
कोई करघा
वो चरखा
क्या है
न
बुना
न
उलझा,
ताना
न
बाना,
सूत गिरणी कहाँ
झाँकती ईंट-दीवारों से
धुएँदार पस्ती
दशकों से बंद
हलचल
थम चुके चर्चे
बेरोजगारी के
साजिशें फली-फूलीं बहुत
अरबों की सम्पत्ति
धुआँती आकृतियाँ
खो चुकीं वजूद
रेशमी सफेद कुरते में
देवदूत विराजे हैं, अब
यहाँ ।