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लोककथा- एक / नीरज दइया
Kavita Kosh से
बगत रै बायरै रा रंग
देख’र पूगै ठूंठ
इतिहास मांय।
बगत रै बायरै रा रंग
दीसै नीं- ठूंठ मांय
दीसै- कूंपळ मांय।
ठूंठ रच्यो एक इतिहास
फेरूं रचै इतिहास!
बो रो बो सागी इतिहास!!
अबै इतिहास खातर
एक लोककथा है-
कूंपळ सूं ठूंठ री जातरा।