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लोकतंत्र की एक बारीक सरहद / राजीव रंजन प्रसाद

उन लम्हों मुझे कुछ याद नहीं था
अंतड़ियाँ फट कर बाहर निकल जाना चाहती थीं
उन पलों जीना कठिन था
दाँतों को भींच कर, हाँथों से पेट थाम कर
आँखें मूंद कर, बेतरतीब सी आवाजें निकाल कर
ऊपर बैठे उस परमपिता परमेश्वर से
रह रह कर गुहार कर रहा था
कि जीवन में कुछ पुण्य अगर किये हों
तो बही-खाता उलट लो
राहत दो भगवन, कैश कर दो हिसाब किताब मेरा..

अस्पताल पहुँच कर अलबत्ता दो सूईयों ने
मेरी सोच को बहुत गहरी नींद के हवाले कर दिया
सुबह होते ही कैसी-कैसी जाँच से हो कर गुजरा
नयी तकनीक से अनपढ़ मैं क्या जानूँ
इतना ही पता चला
अपने पर्स की पीठ पेट से लगने के बाद
कि पेट में पथरी है, निकलवा कर
मुस्कुरा कर लौट सकूँगा घर
"चालीस पचास हजार का मामूली खर्च है
फिर आपको क्या चिंता करना? सरकारी अधिकारी हैं"
डॉक्टर ने मुझे इस नज़र से देख कर कहा
जैसे हलाल होने वाला बकरा मोटा ताजा हो...

बगल ही स्ट्रेचर पर
पच्चीस-तीस साल का युवक
इस तरह कराह रहा था
जैसे उसकी की गर्दन पर आहिस्ता-आहिस्ता चलती हो छुरी
बगल में पग्गड़ लगाये खड़े उस अधेड़ की आँखों में
कुछ लहू के कतरे थे
मेरी बात काट कर वह बीच में ही बोल पड़ा
मैं ले आया हूं डाक्टर साहब, जो कुछ भी मुझसे "जुड़ा"
दस हजार हैं मेरे पास
दो चार और मैं ला पाऊँगा
कुछ करो, नहीं सुनी जाती चीखें
पुण्य समझ लो, दान समझ लो
ऊपर वाले से भी उँचे, आप मेरे सम्मुख
उसने तो दुखियों के हिस्से लिखे सारे दुख..

मैं अपने में सोच रहा था
पीड़ा तो पीड़ा है, बिल्कुल वैसी ही होगी
मुझको पल में राहत, इसको इतनी वितृष्णा
मेरी आव-भगत, उसकी आँखों में मृगतृष्णा...

"मैंने समझाया है तुमको
बार बार क्योंकर समझाऊं "
चीख पड़ा फिर तभी डाक्टर
"जाते हो या धक्के लगवाऊं"
दो घंटे से भेजा खा कर
बार बार सम्मुख तुम आ कर
मेरा कीमत में तौला पल गंवा रहे हो
अस्पताल खैराती भी हैं
सिक्योरिटि बुलवाऊं, या जा रहे हो?

मुझे दर्द फिर हुआ
मगर यह दिल के पास कहीं पर था
उस अधेड़ ने पग्गड़ हाथों में ले कर
जाते-जाते मुझको ऐसी आँखों देखा
जैसी बंजर
आसमान को बारिश की आशा में देखे
मैं जानता हूँ कि यह पगड़ी
उसकी हार और त्रस्त स्वाभिमान की हद थी
लेकिन मेरे और उसके बीच,
लोकतंत्र की एक बारीक सरहद थी

दर्द बपौती नहीं किसी की
लेकिन राहत बपौती है
अस्पताल की जेबें हैं
जब भरती राहत बोती हैं
जब बुनियाद हिली हो तो
बुनियादी सुविधा क्यों होगी?
मरता नहीं देश मेरे क्यों?
क्योंकर जीता जरजर रोगी?

26.02.2007