भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोकतंत्र के पहरेदारों से / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँच न आये कभी आन पर घटे न अपनी शान
लोकतंत्र के पहरेदारो! रहे निरन्तर ध्यान॥

माना तुमने लिखा वीरता का नूतन इतिहास,
भारत को गरिमा ने बढ़ छू लिया उच्च आकाश।
बंग-भूमि का कण-कण तुमको सदा करेगा याद,
किन्तु ध्येय पथ से न डिगा दे तुमको विजयोन्माद।

समझ न बैठो तुम अपने कर्त्तव्यों का अवसान।
लोकतंत्र के पहरेदारो! रहे निरन्तर ध्यान॥

भूलो नहीं, शक्ति-संचय में निहित विजय का सार,
झुकता आया सदा शक्ति के सन्मुख यह संसार।
शक्तिहीन का सत्य-अहिंसा-पालन व्यर्थ प्रयास,
क्षमा सोहती उस भुजंग को विष हो जिसके पास।

रक्षित होते सदा शक्ति से देश-धर्म-ईमान।
लोकतंत्र के पहरेदारो! रहे निरन्तर ध्यान॥

लगे न अपने शौर्य-पटल पर कायरता का दाग,
अमर शहीदों के शोणित से जलता स्वत्व चिराग़।
किया समुन्नत शीश राष्ट्र का देकर अपना भाल,
स्वतंत्रता थाती है उनकी रखना इसे सँभाल।

व्यर्थ न होने पाए अगणित वीरों का बलिदान।
लोकतंत्र के पहरेदारो! रहे निरन्तर ध्यान॥

करना होगा मातृभूमि की महिमा का परित्राण,
फिर से इस जर्जरित राष्ट्र का मिल कर नवनिर्माण।
भूख-ग़रीबी बेकारी का करके जड़ से अन्त,
लाना है भारत-वसुधा पर सुख का मधुर वसन्त।

सोने की चिड़िया कहलाए फिर निज देश महान।
लोकतंत्र के पहरेदारो! रहे निरन्तर ध्यान॥