लोकतंत्र के मेढक / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
अगर मेढक को
उबलते हुए पानी में डाल दिया जाय
तो वह उछल कर बाहर आ जाता है
मगर यदि उसे डाला जाय
धीरे धीरे गर्म हो रहे पानी में
तो उसका दिमाग
धीरे धीरे बढ़ रही गर्मी को सह लेता है
और मेढक उबल कर मर जाता है
छात्रों को मेढक काटकर
उसके अंगों की संचरना तो समझाई जाती है
पर उसके खून का यह गुण
पूरी तरह गुप्त रखा जाता है
तभी तो हमारा तंत्र
युवा आत्माओं को
भ्रष्टाचार की धीमी आँच पर उबालकर मारने में
इतना सफल है
कुछेक आत्माएँ ही
इस साजिश को समझ पाती हैं
और इससे लड़ने की कोशिश करती हैं
पर इस गर्म हो रहे पानी से
लड़ने का कोई फ़ायदा नहीं होता
इस पर लगे घाव पल भर में भर जाते हैं
और लड़ने वाले आखिर में थक कर डूब जाते हैं
तंत्र से लड़ने के दो ही तरीके हैं
या तो आग बुझा दी जाय
या पानी नाली में बहा दिया जाय
और दोनों ही काम
पानी से बाहर रहकर ही किए जा सकते हैं
मेढकों से कोई उम्मीद करना बेकार है