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लोकतंत्र / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
रामलाल !
तूं गाय जैसा आदमी है
इस लिए
घास खा !
वे बेचारे
शेर जैसे आदमी हैं
मांस खाएंगे
तेरा !
देखना !
भूखा न सोए
लोकतंत्र में ।
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"