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लोकतंत्र / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
पच्चास साल बाद भी
तुम्हारे लिए
लोकतंत्र
एक अनसुलझी पहेली रही है
तुम्हारें सोच में
यह फिलहाल
वोट की एक थैली रही है।
लोकतंत्र क्या है?
चुनाव क्यों है?
घीसू मोची
बखूबी जानता है
कि जिसकी लाठी हो
भैंस उसी की होती है।
गरीब हमेशा
गरीब होता है
बेशक कोई तंत्र हो।
शेर और बकरी का भी
भला कोई मुकाबला होता है।
जबकि शेर की जीत
निश्चित होती है
फिर किस बात की जीत
और किसी बात का मुकाबला?