भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोकतंत्र / राजीव रंजन
Kavita Kosh से
वोट की कीमत यहाँ मुर्गा और दारू है।
लोकतंत्र आज बना यहाँ बाजारू है।
नैतिकता और सिद्धांत की राजनीति
यहाँ प्रचार-तंत्र से हारी है।
लोकतंत्र पर आज चमक बाजारवाद
की भारी है।
कर्मठ, समर्पित कार्यकर्ताओं की अब
कहाँ आती बारी है।
जिसके पास जितना है पैसा,
उसकी उतनी सत्ता में भागीदारी है।
राजनीति बनी रखैल बाजार वालों की।
झूठे नारों और चमकते चेहरे वालों की।
कौन देखता है पाँव में पड़े छालों को।
और आज खाने के पड़े लालों को।