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लोकतंत्र / राजेश कमल
Kavita Kosh से
अजब गज़ब समय आया है
जब
हमारा प्रेम कोई और तय कर रहा है
और नफरत
भी कोई और ही तय कर रहा है
हमारे जीभ का स्वाद कैसा होना चाहिए
किसी और ने तय कर रख्खा है
यहाँ तक की
हमारे लंगोट, कच्छे, बनियान भी कोई और ही तय कर रहा है
वो कहते है
बड़ी निर्लज्ज मुस्कराहट के साथ
सब उपरवाला तय कर रहा है
आप और हम होते कौन है
तो
महात्मानो
मेरी मुहब्बत कोई और कैसे तय कर रहा है
दोस्त दुश्मन
खाना पीना
हसना रोना
कुरता पजामा
कोई और कैसे तय कर सकता है
कोई जवाब नहीं है किसी के पास
एक बार
जब उनके भगवान विश्व भ्रमण को निकले
तो दोनों हाथों को असमान की तरफ़ फैला के कहा
की हमारा मुल्क
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है