लोकतंत्र / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
में सोचता हूँ कि
यह जो हमारा लोकतंत्र है
जिस पर गर्व है हमको
दुनिया में हम सम्मानित हैं
जिसकी वज़ह से
वह हमारा ईमान है
या हमारी नीतियों की ढाल।
में यह मानता हूँ कि
नऐ युग की कल्पना
साकार करने के लिए
नया चहरा बनाने के लिए
पैनी क़लम और सधी हुई
उंगलियाँ भी चाहिए।
में समझना चाहता हूँ कि
सत्ता कि गली के बाहर जो शोर है
वह रचनात्मक आलोचना का है
या विध्वंसक दुराग्रह का।
मधु मक्खियों के
उजडे हुऐ छत्ते का अरण्य रोदन।
फिर भी लोकतंत्र में
वाणी का मुखर रहना ज़रूरी है।
दुर्भाग्य है इस लोकतंत्र में
अपराधियों और शासन
की लगी है होड़
देखें कौन आगे निकलता है।
हमेशा कि तरह इस तंत्र ने भी
गरीबी को हटाने का
संकल्प लिया है।
गरीबी भी खडी है बाज़ार में
बिकने के लिए पर कोई गाहक
नहीं आया है अभी तक।
एक पड़ोसी बिक चुका है
आतंक के हाथों
दूसरा तानाशाह विस्तारवादी
जाग्रत है लोकतंत्र का प्रहरी