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लोकतन्त्र ख़ामोश है / कृष्ण कुमार यादव
Kavita Kosh से
लोकतन्त्र ख़ामोश है
हर किसी ने उसे
आगे कर दिया है ढाल की तरह ।
लोकतंत्र की आड़ में
रोज़ बदलते हैं पाले
गिरती हैं सरकारें
पर लोकतंत्र ख़ामोश है।
किस-किस को चुप कराए ये लोकतन्त्र
पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ईराक
और भी न जाने कितने देश
इसका मुलम्मा चढ़ाकर
इसे ही चिढ़ाए जा रहे हैं
हर कहीं, लोकतंत्र लाने की ख़ातिर
घोंटा जा रहा है
लोकतंत्र का ही गला
पर लोकतंत्र ख़ामोश है ।