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लोकतन्त्र / अनामिका अनु
Kavita Kosh से
खरगोश
बाघों को बेचता था,
फिर
अपना पेट भरता था ।
बिके बाघ
ख़रीदारों को
खा गए,
फिर बिकने
बाज़ार में
आ गए ।